संघर्ष का अर्थ क्या होता है? इसका मनोवैज्ञानिक महत्व जानें। संघर्ष का अर्थ क्या है? संघर्ष शब्द का क्या अर्थ है, संघर्ष का आधार, प्रकृति, स्वरूप जानें
संघर्ष का अर्थ क्या होता है? इसका मनोवैज्ञानिक महत्व जानें।इस लेख में संघर्ष क्या होता है संघर्ष का अर्थ, आधार, मनोवैज्ञानिक महत्व, प्राकृति, स्वरूप को विस्तार से बताया गया है । आइए जानते हैं संघर्ष का अर्थ क्या होता है? इसका मनोवैज्ञानिक महत्व जानें -

संघर्ष का अर्थ क्या होता है? इसका मनोवैज्ञानिक महत्व जानें।
संघर्ष का अर्थ क्या होता है? इसका मनोवैज्ञानिक महत्व जानें। 

संघर्ष का अर्थ क्या होता है?Sangharsh-ka-Arth-kya-hota-hai

संघर्ष का अर्थ है- लड़ना, प्रभुत्व के लिए संघर्ष करना, विरोध करना किसी पर काबू पाना आदि। 
  • संघर्ष वह प्रयत्न है जो किसी व्यक्ति या समूह द्वारा शक्ति, हिंसा या प्रतिकार अथवा विरोधपूर्ण किया जाता है
  • हम शब्दों में, स्वयं के लाभ या कार्य के लिए किसी अन्य के कार्य में बाधा डालने के लिए किया जाता है संघर्ष कहलाता है
  • इसके अंतर्गत क्रोध, ग्रहण, आक्रमण, हिंसा एवं क्रूरता आदि की भावनाओं का समावेश होता है।
संघर्ष शब्द की उत्पत्ति क्या है?- संघर्ष (Conflict) शब्द लैटिन भाषा के con+Fligo से मिलकर बना है।
  • 'Con' का अर्थ है - Together तथा Fligo का अर्थ है - To Strik। Read more
  • संघर्ष एक पृथकतावादी प्रक्रिया है। संघर्ष विरोध के बुरे पक्ष का प्रतिनिधित्व करता है
  • संघर्ष का मूल तत्व यह है कि इसमें कोई व्यक्ति या समूह एक ही वस्तु के लिए प्रयत्नशील
  • दूसरे व्यक्ति या समूह के प्रयत्न को अवरुद्ध कर देता है।
संघर्ष या द्वंद से तात्पर्य है - दो या दो से अधिक समूहों के बीच मतभेद प्रतिरोध विरोध आदि से हैं। अपने अस्तित्व के लिए जीवो का परस्पर संघर्ष करते रहने से है।
  • संघर्ष स्थितियों से होता है, जिसमें व्यक्ति/जीव को उसके अनुरूप बनाता है 
  • संघर्ष अपने सपनों को प्राप्त करने का भी हो सकता है।

संघर्ष की परिभाषा क्या है? मनोवैज्ञानिक महत्व

विरोधी राय या सिद्धांतों वाले लोगो बीच एक सक्रिय असहमति को संघर्ष कहते हैं। 
  • प्रमुख संघर्ष क्या है -संघर्ष गंभीर असहमति और किसी महत्वपूर्ण बात के बारे में तर्क है।
  • जिस भी कार्य के लिए संघर्ष हो रहा है उसमें अभी तक सफलता/समझौते पर नहीं पहुंचे हैं संघर्ष कहलाता हैं।
गिलिन तथा गिलिन के अनुसार, "संघर्ष सामाजिक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति अथवा समूह अपने उद्देश्य की प्राप्ति अपने विरोधी की हिंसा अथवा हिंसा के भय द्वारा प्रत्यक्ष चुनौती देकर करते हैं।" 

  • संघर्ष प्रतिकूलता के पश्चात प्रारंभ होता है।
  • स्वार्थपरता बढ़ने से व्यक्ति दूसरे को हानि पहुंचाने लगता है 
  • इसके विरोध में दूसरा व्यक्ति अपनी रक्षा करने का प्रयत्न करता है 
  • उस को हानि पहुंचाने से रोकता है तथा अवसर आने पर प्रत्यक्ष संघर्ष होने लगता है। 
  • कई बार उसके संघर्ष के रास्ते में उसके घर के लोग भी आते हैं। परंतु वह संघर्ष जारी रहता है, और सफल होते हैं। ChatGPT kya hai

संघर्ष की प्रकृति क्या है? मनोवैज्ञानिक महत्व

संघर्ष एक चेतन एवं निरंतर चलने वाली सार्वभौमिक प्रक्रिया है। संघर्ष में द्वन्दियों का पूरा ज्ञान होता है। उद्देश्य व लक्ष्य प्राप्त करने के साथ-साथ विरोधी का दमन भी करना होता है

  • इसमें शक्ति का अधिकाधिक उपयोग होता है।
  • संघर्ष में व्यक्ति प्रधान होता है। व्यक्ति में संवेग (क्रोध) तेज होता है तथा सतर्कता अधिक होती है 
  • इसमें स्थितियों का सूक्ष्म से सूक्ष्म विश्लेषण होता है
  • तथा लक्ष्य विरोधी की अग्रसित होते हैं। इसमें नियम व कानूनों का उल्लंघन होता है। 
  • विरोधी का दमन करने के लिए निरंतर संघर्ष चलता रहता है, जिसमें शक्ति का ह्रास होता है।
  • परिवर्तन की प्रक्रिया सदैव चलती रहती है, जो संचय की प्रवृत्ति उत्पन्न करती है।
  • संघर्ष अति तीव्र उद्वेग और अत्यधिक शक्तिशाली उत्तेजना को जायज कर देता है, 
  • और ध्यान एवं प्रयत्न को अत्यधिक एकाग्र चित्त कर देता है।
  • मनुष्य किसी भी उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक दूसरे के विरुद्ध संघर्ष करता है।

संघर्ष का आधार क्या है?

संघर्ष जीवन का एक हिस्सा है, संघर्ष से ही हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर पाते हैं।
  • कठिन परिस्थितियों में विवेकपूर्ण निर्णय उनके साथ ही सफलता संभव है।
  • संघर्ष एक संघर्ष होता है जिसमें अपने अपने हित, राय, यहां तक कि सिद्धांतों का टकराव होता है।
  • यह संघर्ष देश और समाज दोनों के लिए दोनों के साथ हो सकता है।
  • समाज में हमेशा संघर्ष मिलेगा; क्योंकि संघर्ष के आधार व्यक्तिगत, नस्लीय, वर्ग, जाति, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय हो सकते हैं।  यह भी पढ़ें b-r-ambedkar-ka-10-bildraft.

संघर्ष क्यों होता है?

संघर्ष होता है बातचीत करने वाले दोनों अलग-अलग सेटिंग्स, ब्रह्मांड से संबंधित जानकारी, जागरूकता, पृष्ठभूमि, कार्य, दृष्टिकोण के कारण स्थिति को देखते हैं समझते हैं विचार देते हैं। 
एक विशेष मनोदशा में व्यक्ति एक निश्चित तरीके से सोचते और अनुभव करते हैं तो संघर्ष उत्पन्न होता है। 
जीवन में कठिन संघर्ष से ही सफलता का शंखनाद किया जा सकता है। इसलिए संघर्ष होता रहता है।

संघर्ष के प्रायः दो स्वरूप होते हैं - 

  1. पहला उद्देश्य के आधार पर संघर्ष युद्ध कला प्रतिद्वंदिता मुक्केबाजी आदि।
  2. दूसरा समूह भागीकरण के आधार पर संघर्ष प्रजातीय संघर्ष सांस्कृतिक संघर्ष राजनीतिक संघर्ष धार्मिक संघर्ष औद्योगिक संघर्ष आदि

संघर्ष के कितने प्रकार है ?

संघर्ष के चार प्रकार यहां बताया है -
  • वैयक्तिक संघर्ष निजी स्वार्थों के कारण यह संघर्ष होता है। इससे समूह को कोई लाभ नहीं होता है।
  • अतः प्रत्येक संभव प्रयत्न संघर्ष रोकने के लिए किया जाता है।
  • प्रजाति के संघर्ष विभिन्न प्रजातियों में यह संघर्ष होता है; 
  • जैसे हिंदू मुस्लिम संघर्ष ईसाई मुस्लिम संघर्ष शिया सुन्नी संघर्ष आदि।
  • वर्ग संघर्ष वर्तमान समय में वर्ग संघर्ष प्रमुख स्थान लेता जा रहा है।
  • आज ऐसा कोई दिन नहीं होता जब समाचार पत्र में यह संघर्ष पढ़ने को ना मिलता हो। 
  • वस्तुतः वर्ग संघर्ष एक मार्क्सवादी विचारधारा है। मार्क्स के अनुसार -
  • समाज के शोषक और शोषित ये 2 वर्ग हमेशा ही आपस में संघर्षरत रहे हैं
  • और इनमें समझौता कभी संभव नहीं है।
  • राजनैतिक संघर्ष यह दो प्रकार का होता है -देश के अंदर तथा अंतरराष्ट्रीय।
  • पहला संघर्ष देश में विभिन्न दलों के मध्य होता है तथा दूसरा संघर्ष युद्ध होता है। 

संघर्ष का मनोवैज्ञानिक महत्व क्या है?

संघर्ष जहां एक ओर विघटन उत्पन्न करता है, वहीं दूसरी ओर अनेक आवश्यक गुणों का विकास भी करता है; जैसे-
  1. इसमें चेतना का विकास होता है परिणाम स्वरूप लोग सदैव सतर्क रहते हैं। 
  2. लोग अवसर का उपयोग करते हैं तथा स्थिति का निरीक्षण एवं परीक्षण करते हैं।
  3. लोगों में पारस्परिक सहयोग बढ़ता है, जिससे सामूहिक एकरूपता भी बढ़ जाती है।
  4. लोगों में परिश्रम करने की दर में वृद्धि होती है, जिससे व्यक्ति अधिक से अधिक परिश्रम करता है।
  5. इसके अतिरिक्त समूह द्वारा नवीन ज्ञान अर्जित किया जाता है।
  6. शक्ति का ज्ञान होता है। इसमें वह समस्त स्रोतों, क्षमता तथा साधनों से परिचित होता है।
  7. आत्म चेतना के विकास के साथ-साथ, ज्ञान एवं बुद्धि का विकास होता है।
  8. लोगों के निर्णय, क्रिया एवं प्रत्यक्षीकरण में सूक्ष्मता आती है।
  9. सामूहिक भावना का विकास होता है, जिससे समूह हित की भावना बढ़ती है। इसके अतिरिक्त विकास के नए समूह निर्मित होते हैं।
  10. चरित्र निर्माण के कारण गुणों का प्रकटन होता है और आत्मा स्थापना की इच्छा पूर्ण होता है।
तो इस लेख को पढ़कर आपने सीखा कि संघर्ष क्या है, यह क्यों जरूरी है और इसका मनोवैज्ञानिक महत्व क्या है।Learn more
अतः यह कहा जा सकता है कि संघर्ष का होना भी समाज के हित में है परंतु अधिक संघर्ष हानि पहुंचाने लगता है इसीलिए संघर्ष को सदैव डालने के प्रयत्न किए जाते हैं।

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